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भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ आवाज़ उठाना पत्रकारिता का सबसे कठिन लेकिन जरूरी मोर्चा

Crimekillernews.com

*Freelance journalist and RTI activist – Prinsu Pandey*

पत्रकारिता का असली चेहरा तभी सामने आता है, जब कलम सत्ता, पैसे और डर के आगे झुकने से इनकार कर देती है। खासकर तब, जब किसी पत्रकार का सामना भ्रष्टाचार, माफिया राज, और अवैध कारोबार** से होता है। यह लड़ाई न केवल मुश्किल है, बल्कि जान और इज्ज़त दोनों के लिए खतरनाक भी है।

*खतरे की राह पर कलम*

भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ लिखना पत्रकार को कई मोर्चों पर चुनौती देता है:

*सत्ता में बैठे लोग*
अपनी ताकत और पैसों से खबर दबाने – की कोशिश करते हैं।

*राजनीतिक और आर्थिक दबाव*
डालकर पत्रकार को चुप कराने का प्रयास होता है।

फर्जी मुकदमों में फँसाना, धमकाना, बदनाम करना, और कभी-कभी शारीरिक हमला तक करना — यह सब इस साज़िश का हिस्सा होता है।

राजनीतिक रंग और “जलन” का नैरेटिव भ्रष्ट और अवैध कारोबार करने वाले अक्सर असल मुद्दे को दबाने के लिए दो बड़े हथकंडे अपनाते हैं

राजनीतिक रंग देना
1 सच्चाई सामने आने पर तुरंत कह देंगे, *“ये विपक्ष की चाल है”* या *“हमारे दल को बदनाम करने की साजिश है”*।
इसका फायदा यह होता है कि मुद्दा “भ्रष्टाचार” से हटकर “पार्टी बनाम पार्टी” की बहस में बदल जाता है, और जनता असली सच से दूर हो जाती है।

2. **जलन और ईर्ष्या का बहाना** –
कहेंगे, *“हमारी तरक्की से जलते हैं”*, *“हमारी लोकप्रियता से परेशान होकर बदनाम कर रहे हैं”*।
इस तरह वे अपने भ्रष्टाचार को “व्यक्तिगत दुश्मनी” के चश्मे से दिखाने की कोशिश करते हैं, ताकि जनता सोचने लगे कि यह सिर्फ जलन की वजह से बोला गया आरोप है, न कि हकीकत।
**लोकतंत्र के लिए खतरा**

जब पत्रकार इन दबावों में आकर चुप हो जाता है, तो इसका सीधा नुकसान जनता को होता है:

* सच जनता तक नहीं पहुँचता।
* भ्रष्टाचार और अपराधी मानसिकता को बढ़ावा मिलता है।
* लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।
* – **सोशल मीडिया की दोधारी तलवार**

आज सोशल मीडिया खबर फैलाने का तेज़ जरिया है, लेकिन यहीं सबसे ज्यादा झूठ और भ्रम फैलाया जाता है।

* ट्रोल आर्मी और फर्जी अकाउंट से पत्रकार की छवि खराब की जाती है।
* व्यक्तिगत जीवन पर हमला करके मानसिक दबाव बनाया जाता है।

**पत्रकार की रणनीति क्या होनी चाहिए?**

* **तथ्यों और सबूतों पर आधारित रिपोर्टिंग** — ताकि कोई भी राजनीतिक रंग या जलन का आरोप टिक न सके।
* **मुद्दे को व्यक्ति-व्यक्ति की लड़ाई में न बदलने देना** — ध्यान हमेशा भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ आवाज़ उठाना पत्रकारिता का सबसे कठिन लेकिन जरूरी मोर्चा

*Freelance journalist and RTI activist – Prinsu Pandey*

पत्रकारिता का असली चेहरा तभी सामने आता है, जब कलम सत्ता, पैसे और डर के आगे झुकने से इनकार कर देती है। खासकर तब, जब किसी पत्रकार का सामना भ्रष्टाचार, माफिया राज, और अवैध कारोबार** से होता है। यह लड़ाई न केवल मुश्किल है, बल्कि जान और इज्ज़त दोनों के लिए खतरनाक भी है।

*खतरे की राह पर कलम*

भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ लिखना पत्रकार को कई मोर्चों पर चुनौती देता है:

*सत्ता में बैठे लोग*
अपनी ताकत और पैसों से खबर दबाने – की कोशिश करते हैं।

*राजनीतिक और आर्थिक दबाव*
डालकर पत्रकार को चुप कराने का प्रयास होता है।

फर्जी मुकदमों में फँसाना, धमकाना, बदनाम करना, और कभी-कभी शारीरिक हमला तक करना — यह सब इस साज़िश का हिस्सा होता है।

राजनीतिक रंग और “जलन” का नैरेटिव भ्रष्ट और अवैध कारोबार करने वाले अक्सर असल मुद्दे को दबाने के लिए दो बड़े हथकंडे अपनाते हैं

राजनीतिक रंग देना
1 सच्चाई सामने आने पर तुरंत कह देंगे, *“ये विपक्ष की चाल है”* या *“हमारे दल को बदनाम करने की साजिश है”*।
इसका फायदा यह होता है कि मुद्दा “भ्रष्टाचार” से हटकर “पार्टी बनाम पार्टी” की बहस में बदल जाता है, और जनता असली सच से दूर हो जाती है।

2. **जलन और ईर्ष्या का बहाना** –
कहेंगे, *“हमारी तरक्की से जलते हैं”*, *“हमारी लोकप्रियता से परेशान होकर बदनाम कर रहे हैं”*।
इस तरह वे अपने भ्रष्टाचार को “व्यक्तिगत दुश्मनी” के चश्मे से दिखाने की कोशिश करते हैं, ताकि जनता सोचने लगे कि यह सिर्फ जलन की वजह से बोला गया आरोप है, न कि हकीकत।
**लोकतंत्र के लिए खतरा**

जब पत्रकार इन दबावों में आकर चुप हो जाता है, तो इसका सीधा नुकसान जनता को होता है:

* सच जनता तक नहीं पहुँचता।
* भ्रष्टाचार और अपराधी मानसिकता को बढ़ावा मिलता है।
* लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।
* – **सोशल मीडिया की दोधारी तलवार**

आज सोशल मीडिया खबर फैलाने का तेज़ जरिया है, लेकिन यहीं सबसे ज्यादा झूठ और भ्रम फैलाया जाता है।

* ट्रोल आर्मी और फर्जी अकाउंट से पत्रकार की छवि खराब की जाती है।
* व्यक्तिगत जीवन पर हमला करके मानसिक दबाव बनाया जाता है।

**पत्रकार की रणनीति क्या होनी चाहिए?**

* **तथ्यों और सबूतों पर आधारित रिपोर्टिंग** — ताकि कोई भी राजनीतिक रंग या जलन का आरोप टिक न सके।
* **मुद्दे को व्यक्ति-व्यक्ति की लड़ाई में न बदलने देना** — ध्यान हमेशा भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार पर रखना।
* **जनता को जागरूक करना** — समझाना कि ये “राजनीतिक रंग” और “जलन” के बहाने सिर्फ मुद्दा भटकाने के लिए बनाए जाते हैं।

**सरकार और समाज की जिम्मेदारी**

* सरकार को ऐसे पत्रकारों की **सुरक्षा, कानूनी मदद और संरक्षण** सुनिश्चित करना चाहिए।
* समाज को भी सच लिखने वाले पत्रकारों के साथ खड़े रहना चाहिए, क्योंकि अगर कलम टूटेगी, तो जनता की आवाज़ भी टूट जाएगी।

**निष्कर्ष:**
भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ पत्रकारिता करना आसान नहीं है — यह **खतरनाक लेकिन पवित्र मिशन** है। असली पत्रकार वही है जो धमकी, लालच, और झूठे आरोपों के बावजूद सच के साथ खड़ा रहे।
याद रखिए — पत्रकार का मालिक कोई नेता, पार्टी या कारोबारी नहीं, **सिर्फ और सिर्फ सच है*सेअवैध कारोबार पर रखना।
* **जनता को जागरूक करना** — समझाना कि ये “राजनीतिक रंग” और “जलन” के बहाने सिर्फ मुद्दा भटकाने के लिए बनाए जाते हैं।

**सरकार और समाज की जिम्मेदारी**

* सरकार को ऐसे पत्रकारों की **सुरक्षा, कानूनी मदद और संरक्षण** सुनिश्चित करना चाहिए।
* समाज को भी सच लिखने वाले पत्रकारों के साथ खड़े रहना चाहिए, क्योंकि अगर कलम टूटेगी, तो जनता की आवाज़ भी टूट जाएगी।

**निष्कर्ष:**
भ्रष्टाचार और अवैध कारोबार के खिलाफ पत्रकारिता करना आसान नहीं है — यह **खतरनाक लेकिन पवित्र मिशन** है। असली पत्रकार वही है जो धमकी, लालच, और झूठे आरोपों के बावजूद सच के साथ खड़ा रहे।
याद रखिए — पत्रकार का मालिक कोई नेता, पार्टी या कारोबारी नहीं, **सिर्फ और सिर्फ सच है**।

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