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मानवजाति में अगर मानवीय संवेदना नही ,मनुष्य में मनुष्यता का आचरण नही तो जीवन व्यर्थ है: एस. के.‘रूप’

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बैकुंठपुर/ दूसरों की भावनाओं को समझना, सहानुभूति का आचरण करना, दूसरों के दर्द और पीड़ा को महसूस करना, और उनके प्रति दया भाव रखना समझ रखना दूसरों की भावनाओं विचारों और अनुभवों को समझने की कोशिश करना, जुड़ाव का होना, दूसरों से भावनात्मक रूप से जुड़ना और उनके साथ संबंध प्रगाढ़ करना:– यह मानवी संवेदनाओं के अंग हैं! इसके बिना समाज में दया और सहयोग की भावना कम हो सकती है, स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है कि ईर्ष्या जलन की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए एक दूसरे के प्रति हित कर रहे, भावनाओं का सम्मान करें और एक दूसरे के प्रति सहानुभूति रखें।

प्रकृति स्त्री स्वरूपा है, इसके तीन गुण है सत रज और तम। जीव की प्रकृति इसके अधीन है जो सत प्रधान है उसमें रज और तम की कमी होगी। जो रजोगुणी है उसमें सत व तम की कमी एवं जो तमोगुण है उसमें रज व सत का अभाव दिखेगा । इसके साथ वात पित्त व कफ में जिसकी प्रधानता होगी व्यक्ति का ढांचा ब्राह्य व आंतरिक वैसा निर्मित होगा। ईश्वर इस जगत को चलायमान करते हैं। प्रत्येक पदार्थ प्राण जीव विज्ञान की इकाई को संचालित करते हैं। वो भी बिना किसी भेदभाव के लेकिन मनुष्य उस चलायमान शक्ति के प्रति कितना कर्तव्यनिष्ठ है बल्कि उस अदृश्य पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगातार लगाते रहता है। जो ज्ञानी है वह तत्व को जानता है ब्रह्म व आत्म तत्व को समझता है। वह भटकता नहीं है उसमें भौतिक संग्रहण व कलमष का अभाव होता है वह संतुष्ट रहता है ईश्वर भक्ति में।

ईश्वर भक्ति क्या है? ईश्वर की सेवा क्या है? महापुरुषों का कथन है नर सेवा ही नारायण सेवा है! शिव ज्ञान से जीव सेवा अर्थात शोषित पीड़ित, जरूरतमंद सहित अन्य सभी के साथ मानवीय संवेदना व मनुष्यता का आचरण करना। अगर मनुष्य जन्म लिया है तो जानवर जैसा अपने लिए क्या जीना? संतुलन आवश्यक है परहित सरिस धर्म नहीं भाई के सूत्र वाक्य पर चलना ही मानव जाति का कार्य है। मानव का केंद्र निर्धारित है आत्मतत्व तक। और परमात्मा इन अरबो खरबों आत्म तत्वों का संचालन कर्ता,इसका विस्तार है और फैलाव है इस पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।

फिलहाल मानव संवेदनाएं जो वर्तमान में नष्ट हो रही है उस पर चिंतन जरूरी है। प्रकृति में पदार्थ, प्राण, जीव व ज्ञान इकाई है। प्रत्येक इकाई का अपना अहम योगदान है इन तीनों इकाइयों पर राज ज्ञान अवस्था की इकाई अर्थात मनुष्य करता है।

क्यों क्योंकि वह मतिमान है ईश्वर ने उसे इन तीनों से बड़ा विराट बनाया सामर्थ्यशाली बनाया है और मतिमान अर्थात बुद्धि ज्ञान शक्ति से युक्त बनाया है और मनुष्य कितना इस परिपाटी पर खरा उतर रहा है? यह मनुष्यता का हास ही तो है की मर्डर, बलात्कार, चोरी, डकैती, प्रताड़ना आदि बुरे कर्मों का अपराध का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा है यह मनुष्य के लिए निर्धारित कर्म व सदाचार नही है वही जीव जंतुओं के प्रति संवेदना रहित होना प्रकृति के विनाश का सूचक है। जीव जंतु पर दया मात्र का भाव नहीं होना यह मानवता का गिरता स्तर है।

“एक गाय की आत्मकथा” यह उपन्यास एक ग्रंथ बन चुका है इसे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संपादक साहित्यकार श्री गिरीश पंकज जी ने लिखा है इससे प्रेरित होकर मुहम्मद फैज खान नामक मुस्लिम व्यक्ति अपनी सरकारी नौकरी छोड़ पैदल ही देश भर में भ्रमण करके गौ माता की कथा सुनानी चालू कर दी। साथ ही अन्य को भी नित्य गौ संरक्षण हेतु प्रेरित करते रहते हैं और सनातनी हिंदू धर्म के लोग क्या कर रहे हैं गौ माता की जय का नारा लगाने भर से परिवर्तन व लाभ नहीं होगा स्वार्थ से की गई श्रद्धा कोई फलदाई नहीं होती। आकर्षण का नियम काम कर जाए तो बात अलग है। एक घटना घटी विचार करें भारी बरसात में गौ माता रोड किनारे पड़ी रही लोग देखते गुजर गए आसपास वाले भी कोई सहायता नहीं किए जिनमे संपूर्ण देव का निवास कहा गया है उन्हें घर में पाले जाने वाले श्वान से भी बत्तर समझ लेना अत्यधिक पतन कारी ही होगा। मानव है तो मानवीय संवेदनाओं का होना आवश्यक है।

संवर्त कुमार ‘रूप’
साहित्यकार/ केंद्रीय उपाध्यक्ष जनहित संघ अंतर्गत पण्डो विकास समिति।

(यह लेखक के अपने विचार केवल जनमानस में जागृति हेतु है,किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है।)

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