By Admin
किसी सांसद अथवा विधायक को अपने क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि घोषित करने का संविधान में कोई नियम या विधान नहीं है,देश में बने सांसद प्रतिनिधि का सरकार की निगाह में कोई वजूद नहीं,
ऐसे प्रतिनिधि किसी भी सरकारी पद पर नहीं होते हैं और वे संविधान में निहित किसी भी शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
चूंकि ऐसे प्रतिनिधि सरकारी पद पर नहीं होते हैं, इसलिए वे प्रशासनिक मशीनरी पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते हैं.सरकार की दृष्टि में भी ऐसे प्रतिनिधियों का कोई वजूद नहीं होता है, और उन्हें किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता या अधिकार प्राप्त नहीं होता है.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 में भी ऐसी नियुक्ति संबंधित कोई भी प्रावधान नहीं है।
झाँसी के एक व्यक्ति ने 22 जुलाई 2011 को प्रधानमन्त्री कार्यालय को पत्र लिखकर यह जानना चाहा था कि क्या सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि घोषित करने के लिये संविधान में कोई नियम है?
इसी पत्र में दूसरा सवाल पूछा गया था कि किसी भी सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में अधिकतम कितने प्रतिनिधि घोषित करने का अधिकार है?
तीसरा सवाल था- सांसद प्रतिनिधि के अधिकार और कर्तव्य क्या हैं? इस पत्र को प्रधानमन्त्री कार्यालय द्वारा संसदीय कार्य मन्त्रालय के पास भेज दिया गया था।
संसदीय कार्य मन्त्रालय के सीपीआईओ एवं अवर सचिव एके झा ने 10 अगस्त 2011 को जो जवाब भेजा,इस जवाब में साफ कहा गया है कि सांसद को अपने क्षेत्र में अपना प्रतिनिधि घोषित करने का संविधान में कोई नियम या विधान नहीं है। इस जवाब के बाद यह तय हो गया कि पूरे देश में बने सांसद प्रतिनिधि का सरकार की निगाह में कोई वजूद नहीं।